
नई दिल्ली। 19 जुलाई,1969 देश कि अर्थव्यवस्था खासकर बैंकिंग के इतिहास में बेहद खास दिन के रूप में दर्ज हुआ, क्योंकि 19 जुलाई, 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। उस वक्त ये बैंक देश के बड़े औद्योगिक घराने चला रहे थे। इन बैंकों में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नैशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, देना बैंक, यूको बैंक, केनरा बैंक, यूनाइटेड बैंक, सिंडिकेट बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक, इंडियन बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक तथा बैंक ऑफ महाराष्ट्र शामिल थे।

इंदिरा गांधी के इस फैसले में किसने क्या भूमिका निभाई थी
इंदिरा गांधी: 14 निजी बैंकों को राष्ट्रीयकृत करने के अपने फैसले को न्यायोचित ठहराते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि बैंकिंग को ग्रामीण क्षेत्रों तक ले जाना बेहद जरूरी है, इसलिए यह कदम उठाना पड़ रहा है। हालांकि, उन पर आरोप लगा कि उन्होंने अपने राजनीतिक लाभ के लिए यह कदम उठाया था।
लक्ष्मीकांत झा: प्रधानमंत्री के इस फैसले के क्रियान्वयन में आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर लक्ष्मीकांत झा ने बड़ी भूमिका निभाई थी, लेकिन विडंबना यह रही कि इस फैसले की शायद उन्हें पहले से जानकारी नहीं दी गई थी और वह बाद में इस मुहिम का हिस्सा बने।
इंद्रप्रसाद गोर्धनभाई पटेल: लक्ष्मीकांत झा की तरह इंद्रप्रसाद गोर्धनभाई पटेल को भी प्रधानमंत्री के फैसले की पहले से जानकारी नहीं थी। तत्कालीन आर्थिक मामलों के सचिव पटेल को प्रधानमंत्री के फैसले की घोषणा से महज 24 घंटे पहले इसका मसौदा तैयार करने के लिए कहा गया था।
परमेश्वर नारायण हक्सर: प्रधानमंत्री के तत्काली प्रधान सचिव निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण के फैसले के क्रियान्वयन का जिम्मा संभाल रहे थे।
ए. बख्शी: आरबीआई के तत्कालीन डेप्युटी गवर्नर उन लोगों में से एक थे, जिन्हें प्रधानमंत्री के फैसले की पहले से जानकारी थी।
डी.एन. घोष: घोष ने अपनी आत्मकथा में इस बात का वर्णन किया है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय में उप सचिव होते हुए कितने सक्रिय रहे थे और इस फैसले के क्रियान्वयन में अपनी अहम भूमिका निभाई थी।
वराहगिरी वेंकट गिरि: भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति वी। वी। गिरि ने अध्यादेश पर हस्ताक्षर किया था, जिसके एक दिन बाद उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अपने पद से इस्तीफा देना था।
मोरारजी देसाई: निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण करने की प्रधानमंत्री की योजना से देसाई बेहद नाराज थे। नाराजगी प्रकट करते हुए घोषणा के एक सप्ताह पहले उन्होंने वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।