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इतिहास की धूमिल पगडंडी

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डॉ. के एस राणा
कुलपति, कुमाऊँ विश्वविद्यालय

“चाणक्य” एक बहुत ही लोकप्रिय सीरियल चला करता था 90 के दशक में! सीरियल का कथानक, एक्टिंग और इसमे दिया गया संदेश इतना प्रभावी था, कि लोग उसका बेसब्री से इंतजार किया करते थे।

प्राचीन भारत के महान लोगों और हमारे इतिहास और संस्कृति के बारे में बहुत अच्छे ढंग से दिखाया गया था ! कई ऐसे तथ्य थे जो हमे कभी इतिहास की किताबो में नही पढ़ाये गए, और ये तथ्य ऐसे थे जिन पर हर भारतीय को गर्व की अनुभूति होती। उस ज़माने में युवाओं को ये जानकारी पहली बार मिल रही थी ! जिस वजह से उन्हें अपने इतिहास को लेकर जिज्ञासा भी हुई, और साथ ही इस इतिहास से जुड़ाव भी होने लगा, क्योंकि अब तक तो हमे बस हुमायूं से औरंगजेब और फिर अंग्रेजों की कहानियां ही पता थी। उससे पहले भारत मे 5000 सालों में क्या हुआ, कैसे हुआ, ये सब हमसे छुपाया गया, एक एजेंडे के तहत।

80 के दशक के अंत में रामायण और महाभारत जैसे सीरियल अति लोकप्रिय हो चुके थे, इन सीरिअल्स की वजह से जनचेतना और राष्ट्रचेतना उभरने लगी थी, और इन दोनों ही चीजों से एक वर्ग को सख्त नफरत होती है। किंतु मोदी सरकार में पुराने महाभारत रामायण पुनः प्रस्तुत हो गए किंतु चाणक्य नहीं ? तो असली बात पर आते है -इतिहास माफिया वर्ग को लगा कि चाणक्य सीरियल ‘सेक्युलर’ भारत पर एक ‘हिन्दुत्व’ का हमला था। और फिर शुरू हुआ इस सीरियल के खिलाफ एक प्रोपगंडा का खेल।

R Champakalakshmi एक History की प्रोफेसर थी JNU में, उन्हें चाणक्य सीरियल में एक ‘प्रो हिन्दुत्व’ और ‘Nationalist’ एजेंडा दिखा। उन्हें आपत्ति थी कि क्यों सीरियल में ‘भगवा’ झंडों का उपयोग किया जाता है, क्यों बारंबार ‘हर हर महादेव’ के नारे लगाए जाते हैं। उन्हें ये सब आपत्तिजनक लगा, pseudo secular.

उन्होंने बताया कि ऐसा कोई ऐतिहासिक तथ्य (उनके कुंठित ज्ञान के अनुसार) नहीं जो ये साबित करे कि उस समय मगध के लोग युद्ध मे भगवा झंडों का उपयोग करते थे। उन्होंने ये भी कहा कि ‘हर हर महादेव’ के नारे लगाने का भी कोई ऐतिहासिक सबूत नही ?

चाणक्य सीरियल के निर्देशक Dr Chandra Prakash Dwivedi ने इन आपत्तियों को खारिज किया और उल्टा चम्पकलक्ष्मी से पूछा कि वे बताएं कि सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की सेना उनके ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार किस रंग के झंडों का उपयोग करती थी ? और साथ ही इनके सबूत भी दिखाए ?

जैसा कि उम्मीद थी, आज तक इन सवालों के कोई जवाब नही दिए।
कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी राष्ट्रीयता और धार्मिक प्रतीकों से चिढ़ते हैं। उन्हें चिढ़ है भगवा रंग से, क्योंकि ये रंग हमेशा से शौर्य का प्रतीक रहा है हमारी संस्कृति में। उन्हें चिढ़ है हमारे आराध्यों के नारों से, क्योंकि उन्हें पता है इन नारों को लगाने से हमारा जुड़ाव हमारे धर्म से बढ़ता है !

JNU, DU और AMU में कुछ इतिहास माफिया कार्य करता है, इनका काम ही है हमारे इतिहास को विकृत करना, और अगर कोई सही इतिहास बताए तो उसे बदनाम करना और उसे बायकाट करना।

चाणक्य सीरियल के साथ भी यही हुआ। इस इतिहास माफिया ने अपनी मशीनरी (मीडिया, एकेडेमिया, सरकार, बॉलीवुड) का इस्तेमाल किया और एक धारणा को जन्म दिया। इन्होंने आरोप लगाया कि मगध साम्राज्य के समय (चौथी सदी), कोई भारत देश था ही नही, और ना लोगों मे देशभक्ति जैसी कोई भावना होती थी। इन लोगों ने चाणक्य सीरियल के निर्माताओं पर आरोप लगाया कि ये लोग झूठ फैला रहे हैं, और एक ‘वृहद भारतीय पहचान’ बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो उस समय नहीं हुआ करती थी।

इतिहास माफिया को मैं चुनातीपूर्वक पूछता हूँ कि अगर अंग्रेजों द्वारा कथित रूप से ‘भारत देश’ बनाने से पहले अगर कुछ नही था, तो 15वीं सदी में वास्कोडिगामा ‘किस’ जगह की खोज करने के लिए आया था?

वो भारत था या कोई अन्य देश था?
वो कौन सा देश था जिसका वर्णन मेगस्थनीज ने अपने यात्रा वृत्तांतों में किया था? क्या वो भारत देश था या अलग थलग पड़े हुए राजे रजवाड़े थे?
उम्मीद के अनुसार, इन सवालों के कभी जवाब नहीं आ सके।
सांस्कृतिक जुड़ाव और एकात्मकता की भावना से इनका दूर दूर तक कोई लेना देना नही ?
एक ऐसा क्षेत्र जिसमें अलग अलग बोली बोलने वाले, अलग धर्मों को मानने वाले लोग रहते हों, वृहद संस्कृति को मानने वाले लोग रहते हों, और उन पर किसी का राज हो या ना हो, ऐसा क्षेत्र इतिहास माफ़ियों के लिए ‘देश’ नही होता ?
दरअसल यही तो भारत था, मुगलों और अंग्रेजो के आने से पहले…

सम्राट अशोक ने क्या किया?
उन्होंने एक महान देश की स्थापना की, उन्होंने छोटे बड़े राज्यों को सम्मिलित किया और अंत मे अपना राज्य ही त्याग कर दिया और सन्यास ने लिया। क्यूँकि राज्य बनाना और उस पर शासन करना उनका एजेंडा नही था। एजेंडा तो यही था कि इस भूमि पर सभी एक हो कर रहें, एक देश की तरह रहें, जिसे भारत कहा जाता था, और ये कोई आज की धारणा नही थी, 5000 साल से पुराना इतिहास उठा कर देख लीजिए, यही मिलेगा।

एक समालोचक इकबाल मसूद तो एक कदम आगे ही बढ़ गए। उन्होंने उस समय के माहौल को देखते हुए आरोप लगाया कि “आज के हिंसात्मक माहौल (90 के दशक के शुरुआती समय) में सीरियल में दिखाए गए ब्राह्मण (शिखा रखे हुए और सर मुंढाये हुए) और सीरियल में दिखाए गए वैदिक मंत्रों के उच्चारण से धार्मिक ध्रुवीकरण हो सकता है, और लोगों के (हिन्दुओं) के मन मे धर्म को लेकर उत्तेजना का संचार हो सकता है”।

ऐसे सैंकड़ों हथकंडे अपनाए, और तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर जबरदस्त दबाव बनाया इस सीरियल को बन्द कराने के लिए, क्योंकि ये सीरियल उन इतिहास माफिया के बताए हुए प्रोपगंडे को तोड़ रहा था।

अंततः कांग्रेस की सरकार दबाव में आई, और इस सीरियल को बन्द कर दिया गया। और इस तरह एक रिसर्च पर आधारित, alternative और असली इतिहास के दर्शन कराने वाला सीरियल, ‘pseudo secularism ‘की भेंट चढ़ गया।
….क्या मोदी सरकार इसे फिर शुरू करायेगी ?

समीक्षा एवं विश्लेषण : डॉ. के.एस. राणा, कुलपति, कुमाऊं विश्वविद्यालय

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